मै

"जीवन के हर विषम संघर्ष मे अगर परिणाम देखोगे तो तुम्हारा कल तुम्हारी सोच से उतना ही दुर हो जाएगा..जितना ओस की बुन्दो का ठहरावपन"..
दुर्गेश 'सोनी'

Saturday 28 May 2011

क्या पाया ?



महसुस किया तो पाया
किताबो मे मुडा वो पन्ना क्या इशारा करता था
आज़ कि खुशी का पुर्व मै वाचन करता था
तभी
आज के गमगीन सलीखो मे मै
पता चला
शायद उन दिनो की रातो से मै डरता था
महनत कश ज़िन्दगी का वो एक मोड था
जिसे नहर समझ मैने उस रास्ते से मोड दिया
तरक्की पैदाइश तो दो दिनो कि मोहताज थी
प्रतिष्ठा अपने आइने मै सरताज थी
फ़िर
क्यु ज़िक्र किया उन भिगते फ़सानो का
ज़िनमे समझाइश का कोई मोल नही
क्या विचार करु आज के हालातो पे मै
दुर पुरब का सुरज भी मेरे घर मे डुब जाता
उन पंछियो का बसेरा भी उजड जाता है
बेशक
गलतीयो का पुलिन्दा था मै
बक्शीश तो दे
ज़िन्दगी तो लहरो का साज है
मै जानता हु वो मेरे कल का आज है ।।
                   दुर्गेश 'सोनी'



Friday 27 May 2011

जी हा

प्रेम की कोमल हवा मे नासूर पतझड की रवानी है
बिना कत्ले आम उन गुनहगारो की कहानी है
                                      'सोनी'
मोहताज उस जमी के हम कुछ यु हो गये
नक्शा बंद लोगो से गुनहगर हो गये
शिखर का अन्त मेरे कन्धो मै था
उस ना गवारी ने
मेरे हुनर को मोड दिया
तब से
गरीबी के उन सिक्को ने खनकना छोड दिया ।।

                              दुर्गेश'सोनी'

गुमशुदा

पिघल तो नही पाता-
पर अफसोस
एक आख मिचौली ने
ये रजनी कि शिला जो तोडी थी ।
वो जमाना तो गुजर गया
लहराते हाथो कि मासुमियत जिसने छोडी थी ।
अब तो उस पंक से पकंज ने भी जीना छोड दिया
मुस्कुराते हाथो के कंघन को भी तोड दीया
और ये पथ
मीठे बहानो से इसने मुझे लीया है
विद्रुम होठो ने कुछ तो किया है
गनीमत है
उस चुभते कांटे ने मेरा साथ दिया
शायद
रेत के प्रतिबिम्बो का शुक्रिया है ?
                    दुर्गेश  'सोनी'

Saturday 21 May 2011

शहर

मै न कहता था
मेरे चमन मै वो दाग भी है
शहर-ए-बस्ती का वो ख्वाब भी है
सोचा था मैने
मेरा शहर भी शहरेपनाह होगा
आबाद, गुलिस्ता, मजहब
प्यार, सोच, नुमाइन्दगी का मेल होगा ।।
समझ के समझ को समझा
बेमेल के इस श्मशान मे
मै ना तु है, तु ना मै हु
मन बेमन है
सम असम है
आकाश का जाल है
मरुधरा का जन्जाल है...
फ़िजाओ की रंगीनीयत मै
हर तरफ़ हैवानियत का नजारा था
हर शक्स की नजरो पर
बिख्ररा वो पैसा गवारा था
एकाएक
उस विचार को दिल के दरपन मै देखा
जब मैने तन्हाइयो मै कहा था
मै अकेला हु मै अकेला था....

दुर्गेश "सोनी"