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"जीवन के हर विषम संघर्ष मे अगर परिणाम देखोगे तो तुम्हारा कल तुम्हारी सोच से उतना ही दुर हो जाएगा..जितना ओस की बुन्दो का ठहरावपन"..
दुर्गेश 'सोनी'

Friday 5 August 2011

लौट आया वो पक्षी अपने अधकटे पंखो से


लौट आया वो पक्षी अपने अधकटे पंखो से
 कभी चिनाब का मर्म लाल देख
 लालगढ को हाशिये मे सना देख
 हर सपने वहा अजीब तस्कर होते है
 पडो के पत्ते अपने आप गरीब होते है
 चूल्हो का सफ़ेद धुआ बेरंगा है
 बागपन अपने आप लशकर मे रंगा है
 उगता हुआ सूरज लहुलहान है ||
बेहोश चादनी को जगाते लौट आया वो पक्षी अपने अधकटे पंखो से.......

 पत्थर, बेखबर गोली हर आगोश मे विलीन है
 हर शख्स की नजरे अनीत बारुद मे तल्लीन है
 कटी लाशो पर कौओ का पहरा आम नही खास है
 वादियो का हर हिस्सा नुक्त्ताचीनी के आस पास है
 विकास शर्माता है मोद प्रमोद इतिहास के शब्द है
 फ़ुल गुलदान से झड रहे अंतरिक्ष कफ़न मे लब्ध है
 गरीब की पैदाईश वहा मलीन है ||
 ये चला सुनाते हुए लौट आया वो पक्षी अपने अधकटे पंखो से............

 सपना अनमोल भी है जरुरते पूरी क्यो नही रही
 लोकतन्त्र की ताली संसद मे क्यु बज रही
 आखिर वो कौशल बन्दूक से निकल जाये कहा
 अन्धीयारे मे सोये वो दीपक हक से जले कहा
 तितलिया उडती है परो का साया जमी मे बिछता है
 खादी खाकी से हर शक्स वहा जलता है
 कतरा कतरा खून देखकर ||
पीठ पर बोझ डाल लिए लौट आया वो पक्षी अपने अधकटे पंखो से...........
दुर्गेश  सोनी'

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