मै

"जीवन के हर विषम संघर्ष मे अगर परिणाम देखोगे तो तुम्हारा कल तुम्हारी सोच से उतना ही दुर हो जाएगा..जितना ओस की बुन्दो का ठहरावपन"..
दुर्गेश 'सोनी'

Tuesday 3 January 2012

सिर्फ़ जीस्त (जिन्दगी)
----------------------------------------------------------
मुकम्म्ल जीस्त का चेहरा बडा अजीब है,

रकीब की शाम मे चॉद की रोटी/
कभी फ़ूलो की वादी मे बारुद की ललक है,

कभी सहमे हुए सपनो मे जीने की कहानी,
कही बहते हुए ऑसु मे प्रेम की मशक्कत है,

यहा ना दिन कभी ढलता है
कस्तुरी रात मुफ़लिसी को डराती है,

कभी रिश्ते रिस कर ओझल हो जाते है
कही अनजान दावतो का शहर बन जाते है,

कभी प्रश्नो का ताना बाना बुन जाता है
कही सदिया उत्तर दे जाती है,

कोइ सफ़ेदी मे जुल्म सा कर जाता है
कोइ श्याम सा पत्थर मे पुजा जाता है,

कोइ सीमा मे हाथ जोड मन्नत करता
कही रुहानी मे सर झुक जाता है,

इस मौसम की हर फ़ितरत मे यही दास्ता है
हर इक जीस्त का सिर्फ़ जीस्त से वास्ता है

----दुर्गेश सोनी