रिश्ते
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मशगुल इस जमाने मे तलफ़गार ऑसु बना देते है
इक बिना सीकी रोटी मे हजारो अहसान सुना देते है....
कि बहुत समझा है अपनो को खुशियो मे दुआ मिले
इस फ़रियाद मे वे अपनी नई चादर गिना देते है....
बमुश्किल कहा गये वो कंघन जो मॉ ने बटवारे मे दिए थे
इस गरीबी मे ये चहरे,रिश्तो की असलियत गिना देते है....
कि जिन्दगी के तल्ख कांरवा मे अब बेबस यु रहे
ये मुसाफ़िर को अकेले दिन की कमियॉ सिखा देते है....
----दुर्गेश सोनी'
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मशगुल इस जमाने मे तलफ़गार ऑसु बना देते है
इक बिना सीकी रोटी मे हजारो अहसान सुना देते है....
कि बहुत समझा है अपनो को खुशियो मे दुआ मिले
इस फ़रियाद मे वे अपनी नई चादर गिना देते है....
बमुश्किल कहा गये वो कंघन जो मॉ ने बटवारे मे दिए थे
इस गरीबी मे ये चहरे,रिश्तो की असलियत गिना देते है....
कि जिन्दगी के तल्ख कांरवा मे अब बेबस यु रहे
ये मुसाफ़िर को अकेले दिन की कमियॉ सिखा देते है....
----दुर्गेश सोनी'
पञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
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"आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"
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प्रिय बंधुवर दुर्गेश सोनी जी
सस्नेहाभिवादन !
कहां गये वो कंगन जो मां ने बटवारे में दिए थे
इस गरीबी में ये चेहरे , रिश्तो की असलियत गिना देते हैं
अच्छा लिखा है , और भी श्रेष्ठ सृजन के लिए शुभकामनाएं हैं …
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शुक्रिया...
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