मै

"जीवन के हर विषम संघर्ष मे अगर परिणाम देखोगे तो तुम्हारा कल तुम्हारी सोच से उतना ही दुर हो जाएगा..जितना ओस की बुन्दो का ठहरावपन"..
दुर्गेश 'सोनी'

Wednesday 10 August 2011

फ़र्क

जिन्दगी तो बेरहम ये है...यहॉ अमीरी ओर गरीबी का ताल्लुक नही..
जहॉ दिखे है वीरान मे चूल्हे ओर दानो की फ़सल..वहा अलसुबह गगनचुम्बी मीनारो की नदिया बहा दो
यहॉ ताल्लुक है !
मीनारो की फ़र्श का दबी फ़सलो से
जो हर समय किनारो से एक दुजे को सच ओर झुठ के गर्व से देखते है .......
(युग परिवर्तन अभी दुर है)

Friday 5 August 2011

लौट आया वो पक्षी अपने अधकटे पंखो से


लौट आया वो पक्षी अपने अधकटे पंखो से
 कभी चिनाब का मर्म लाल देख
 लालगढ को हाशिये मे सना देख
 हर सपने वहा अजीब तस्कर होते है
 पडो के पत्ते अपने आप गरीब होते है
 चूल्हो का सफ़ेद धुआ बेरंगा है
 बागपन अपने आप लशकर मे रंगा है
 उगता हुआ सूरज लहुलहान है ||
बेहोश चादनी को जगाते लौट आया वो पक्षी अपने अधकटे पंखो से.......

 पत्थर, बेखबर गोली हर आगोश मे विलीन है
 हर शख्स की नजरे अनीत बारुद मे तल्लीन है
 कटी लाशो पर कौओ का पहरा आम नही खास है
 वादियो का हर हिस्सा नुक्त्ताचीनी के आस पास है
 विकास शर्माता है मोद प्रमोद इतिहास के शब्द है
 फ़ुल गुलदान से झड रहे अंतरिक्ष कफ़न मे लब्ध है
 गरीब की पैदाईश वहा मलीन है ||
 ये चला सुनाते हुए लौट आया वो पक्षी अपने अधकटे पंखो से............

 सपना अनमोल भी है जरुरते पूरी क्यो नही रही
 लोकतन्त्र की ताली संसद मे क्यु बज रही
 आखिर वो कौशल बन्दूक से निकल जाये कहा
 अन्धीयारे मे सोये वो दीपक हक से जले कहा
 तितलिया उडती है परो का साया जमी मे बिछता है
 खादी खाकी से हर शक्स वहा जलता है
 कतरा कतरा खून देखकर ||
पीठ पर बोझ डाल लिए लौट आया वो पक्षी अपने अधकटे पंखो से...........
दुर्गेश  सोनी'

Thursday 4 August 2011

पीडा


मै अपने अन्तस्थ
रुपाकारो से
ह्रदय का पावन
अभिषेक कर रहा हु
मथ रहा हु
भीतर ही भीतर
अपने द्वन्द्वो को बुनकर
बना रहा हु जाल
खगो के लिए
उपद्रवियो के लिए...
मेरा निमित्त
अथाह हिलोरे खा रहा
बिछोह स्फ़ुरण को
वह बढना चाह रहा
पथिक कि भॉति
पर! जाने क्यु पॉव गढ गये
रुक गये थम गये है ...
मै बैचेनी से
भर जाता हु निविडता से
उपद्रवियो द्वारा
मुझे आनन फ़ानन मे
काफ़िले से मिटाना चाहते है
वजुद को मिटाना चाहते है...
आखिर 
ये पीडा,दर्द,रव
सोच की शान्ति मे
डुब जाते है
निशंक 
एक मनुज के अंहकार मे
दब जाते है......
दुर्गेश 'सोनी'