पिघल तो नही पाता-
पर अफसोस
एक आख मिचौली ने
ये रजनी कि शिला जो तोडी थी ।
वो जमाना तो गुजर गया
लहराते हाथो कि मासुमियत जिसने छोडी थी ।
अब तो उस पंक से पकंज ने भी जीना छोड दिया
मुस्कुराते हाथो के कंघन को भी तोड दीया
और ये पथ
मीठे बहानो से इसने मुझे लीया है
विद्रुम होठो ने कुछ तो किया है
गनीमत है
उस चुभते कांटे ने मेरा साथ दिया
शायद
रेत के प्रतिबिम्बो का शुक्रिया है ?
दुर्गेश 'सोनी'
पर अफसोस
एक आख मिचौली ने
ये रजनी कि शिला जो तोडी थी ।
वो जमाना तो गुजर गया
लहराते हाथो कि मासुमियत जिसने छोडी थी ।
अब तो उस पंक से पकंज ने भी जीना छोड दिया
मुस्कुराते हाथो के कंघन को भी तोड दीया
और ये पथ
मीठे बहानो से इसने मुझे लीया है
विद्रुम होठो ने कुछ तो किया है
गनीमत है
उस चुभते कांटे ने मेरा साथ दिया
शायद
रेत के प्रतिबिम्बो का शुक्रिया है ?
दुर्गेश 'सोनी'
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