मै

"जीवन के हर विषम संघर्ष मे अगर परिणाम देखोगे तो तुम्हारा कल तुम्हारी सोच से उतना ही दुर हो जाएगा..जितना ओस की बुन्दो का ठहरावपन"..
दुर्गेश 'सोनी'

Saturday 28 May 2011

क्या पाया ?



महसुस किया तो पाया
किताबो मे मुडा वो पन्ना क्या इशारा करता था
आज़ कि खुशी का पुर्व मै वाचन करता था
तभी
आज के गमगीन सलीखो मे मै
पता चला
शायद उन दिनो की रातो से मै डरता था
महनत कश ज़िन्दगी का वो एक मोड था
जिसे नहर समझ मैने उस रास्ते से मोड दिया
तरक्की पैदाइश तो दो दिनो कि मोहताज थी
प्रतिष्ठा अपने आइने मै सरताज थी
फ़िर
क्यु ज़िक्र किया उन भिगते फ़सानो का
ज़िनमे समझाइश का कोई मोल नही
क्या विचार करु आज के हालातो पे मै
दुर पुरब का सुरज भी मेरे घर मे डुब जाता
उन पंछियो का बसेरा भी उजड जाता है
बेशक
गलतीयो का पुलिन्दा था मै
बक्शीश तो दे
ज़िन्दगी तो लहरो का साज है
मै जानता हु वो मेरे कल का आज है ।।
                   दुर्गेश 'सोनी'



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