एक दिन कब्रिस्तान के समीप हो जा रहा था
वही बैठा था कातरता युक्त भूत
मै डरा
वह बोला अब मत डरो
किसी को दुख न दूगा अब ।
मै था प्रजातन्त्र का ठेकेदार
जिन्दा था जब मीलो की जमी हथियायी मैने
खुब गमन किया पैसा
वो पैसा वही रह गया
आज स्वं को कब्रिस्तान मै नही ढाल पा रहा हु
दो गज भूमि भी अब मेरे पास नही है
अब तो मै यु ही भटकता रह्ता हु
कभी पीपल मै बरगदो मै
कभी किसी कुए मै........
दुर्गेश 'सोनी'
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