मेरी शहादत को कुर्बानी का नाम यु आंसमा मे न जोडना
वरना मेरी जमी की मीट्टी की मेरी कब्र को नसीब न होगी
गर जला भी दो सुनसान रातो मे दियो की लौ मेरी बगावत पर
तो कुछ दिनो उन्हे तह भी देना...
बेशक़ अपनी जमी पे ना हु
चिरागो मे तेरे शिकवे को आलम मे न बदल जाउ तो कह देना ||
दुर्गेश 'सोनी'
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