मै

"जीवन के हर विषम संघर्ष मे अगर परिणाम देखोगे तो तुम्हारा कल तुम्हारी सोच से उतना ही दुर हो जाएगा..जितना ओस की बुन्दो का ठहरावपन"..
दुर्गेश 'सोनी'

Tuesday 12 July 2011

गरीबी

मै कल था
आज भी हु
अगले सवेरे शायद रहू
गरीबी की वेदना
इन्ही जज्बातो मे रोया करती है
कल कुछ नही खाया
आज का पता नही
अगला भोर
आक्रोशित भाव से
मेरी गडी आंखो मे
चिर निद्रा लाने को बैचेन है
मेरी ज़िज्ञासा
इन्हे सोचकर ही डुबा करती है
मेरा कुटुम्ब
मेरी कलीयो पर निर्भर करता है
कल मैने एक को बेचा
आज भी जा रहा हु
कल के
व्यव्सायी इन्तजार मे है..
यही सब होकर
मेरी कहानी
इस अकेलेपन के
सस्ते बाजार मे
खामोश रास्तो की तरह

खत्म हो जाया करती है......
दुर्गेश सोनी

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