मै कल था
आज भी हु
अगले सवेरे शायद रहू
गरीबी की वेदना
इन्ही जज्बातो मे रोया करती है
कल कुछ नही खाया
आज का पता नही
अगला भोर
आक्रोशित भाव से
मेरी गडी आंखो मे
चिर निद्रा लाने को बैचेन है
मेरी ज़िज्ञासा
इन्हे सोचकर ही डुबा करती है
मेरा कुटुम्ब
मेरी कलीयो पर निर्भर करता है
कल मैने एक को बेचा
आज भी जा रहा हु
कल के
व्यव्सायी इन्तजार मे है..
यही सब होकर
मेरी कहानी
इस अकेलेपन केसस्ते बाजार मे
खामोश रास्तो की तरह
खत्म हो जाया करती है......
दुर्गेश सोनी
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