जीवन का मतलब इक औरत ने यु बतलाया
कभी फ़ुलो से बनी थी
फ़ुलो को कही ओर ले जाया गया
उस आंगन को खुशबु से महकाया गया
दो चार जो पत्ते झड गये थे
गुथा गया मरोडा गया सुखा गया
अजब संघर्षो का ये विराम कभी न रुका
अन्त मे उस माली के हाथ कही ओर "बेचा" गया
दुर्गेश 'सोनी'
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