मै

"जीवन के हर विषम संघर्ष मे अगर परिणाम देखोगे तो तुम्हारा कल तुम्हारी सोच से उतना ही दुर हो जाएगा..जितना ओस की बुन्दो का ठहरावपन"..
दुर्गेश 'सोनी'

Saturday 9 July 2011

प्रीतम

कोइ रह इश्क़ मे किनारा बन जाता है
कोइ संग कुमकुम के अफ़साना हो जाता है
कोइ भीगी सी पलके
मौन किनारो पर इक कंकर पे रुक जाती है
कोइ हरे-भरे आंगन मे
संग प्रीतम हंसी-ठीठोली कर जाता है
ये दो गीत हर सदी सम-विषम रह जाते है
कोइ संग निवालो को इक दुजे मे दे जाता है
कोइ सुनी रातो मे
भर आंसु का प्याला पी जाता है
'सोनी'

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