कोइ रह इश्क़ मे किनारा बन जाता है
कोइ संग कुमकुम के अफ़साना हो जाता है
कोइ भीगी सी पलके
मौन किनारो पर इक कंकर पे रुक जाती है
कोइ हरे-भरे आंगन मे
संग प्रीतम हंसी-ठीठोली कर जाता है
ये दो गीत हर सदी सम-विषम रह जाते है
कोइ संग निवालो को इक दुजे मे दे जाता है
कोइ सुनी रातो मे
भर आंसु का प्याला पी जाता है
'सोनी'
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