मै

"जीवन के हर विषम संघर्ष मे अगर परिणाम देखोगे तो तुम्हारा कल तुम्हारी सोच से उतना ही दुर हो जाएगा..जितना ओस की बुन्दो का ठहरावपन"..
दुर्गेश 'सोनी'

Saturday 9 July 2011

सजा

अदब से यु दरियादिली की उसने सजा सुनाई
संग खाए उन नीवालो की प्यारी मुहब्ब्त गिनाई
अफ़सोस ये नही--
कि तेरे बचपन ने मुझे कितना अपनाया था 
गनीमत वो रेशमी रुमाल तुमने अभी तक मांगा नही......
"सोनी"

2 comments:

  1. भाईजी कहीं दिल की चोट खाए लगतें हो, जो हम जैसों के लिए इतनी बढ़िया रचना निकलती रहतीं है.
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    हाँ कहीं कहीं वर्तनी सम्बन्धी अन्तराय खटकता है.....................और टिपण्णी बॉक्स में से वर्ड वैरिफिकेशन भी रोड़ा अटकाता है. कृपया इसे भी हटा दे.

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  2. आपके विचार मेरे मस्तिष्क पटल के द्वारा सहज समझे गये है ,,,,आगे से ध्यान रखा जाएगा

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