मै

"जीवन के हर विषम संघर्ष मे अगर परिणाम देखोगे तो तुम्हारा कल तुम्हारी सोच से उतना ही दुर हो जाएगा..जितना ओस की बुन्दो का ठहरावपन"..
दुर्गेश 'सोनी'

Thursday 7 July 2011

लिप्सा

वो यादे बेशर्म है
जो मन मे दिखती है
उसके कल्पित चहरे को
आड्म्बर मे जीने को सहती है
लिप्सा धुमिल है
आनंद का भोर
सुर्योदय से पहले
नग्न रात्रि को आया है
बैचेन चेहरा
उसकी हर एक सांत्वना मे
वासाना की बु देखता है
खुद्दार ये मस्तिष्क
क्यो विचलित करता है
जो प्राण
पतित को आश्रित है.....
'सोनी'

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